शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

सार्थकता ⛳ [अतुकान्तिका ]

 481/2022

            

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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एक बाहर गई,

एक अंदर आई,

परंतु वे दोनों

नहीं थीं एक,

जाने वाली

कोई और थी,

आने वाली कोई और।


वे आती- जाती रहीं,

और चलती रही  जिंदगी,

एक- एक साँस,

अनवरत अनगिनत

स्वतः बिना किसी प्रयास,

फिर भी कहीं न कहीं

अंकित है उनका भी

लेखा - जोखा

आने -जाने का विवरण,

जैसे  वृथा नहीं

धरती पर एक भी तृण।


बरबाद नहीं करना,

उनका आवागमन ही

कहलाता है जीवन,

आवागमन होते ही बंद

शेष नहीं रहता जीवन,

कहलाने लगता है

वह मानव का मरण,

प्रभु की अंतिम शरण,

करना ही होता है

रक न एक दिन

उसका हम सबको वरण।


सुधार लें 

हम सब 

अपने आचरण,

सार्थकता में

बनाएँ साँसों का

आवागमन,

महक उठेगा 

तब जीवन का

 कण- कण,

प्रति क्षण,

लगा मत बैठना

पशुवत अपना पण।


जीना भी क्या जीना

कि आए और विदा हुए,

कुछ अमिट पद चिह्न 

छोड़ते हुए तो जाना है,

भले ही कुछ भी नहीं अमर

फिर भी जीवन को

'शुभम्' बनाना है।


🪴 शुभमस्तु !


18.11.2022◆6.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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