493/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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माता वीणावादिनी, करतीं कृपा अपार।
अनदेखी करती कहीं,बहे न कविता-धार।।
पाहन प्रतिमा ईश की,यद्यपि रहती मौन।
अनदेखी करती नहीं, आया उसके भौन।।
पंचतत्त्व के योग से, बनती नश्वर देह।
अनदेखी यदि वे करें,बनें धरा के खेह।।
यद्यपि हैं सन्यास में,है गृहस्थ नित साथ।
अनदेखी से क्यों मिले, तन हित रोटी हाथ।।
वह्नि वायु का साथ है, सरें न उनके काज।
अनदेखी कैसे करें, परसों कल या आज।।
कैसे सागर की करे,अनदेखी सरि - धार।
कल-कल कर मिलने चली,गाती गीत मल्हार
अनदेखी कर ट्रेन में, बैठे पुरुष सवार।
बीरबानियाँ बोलतीं, आदत से लाचार।।
गुरु जब अनदेखी करें, शिष्य न पाए ज्ञान।
नीचे ज्वलित चिराग के,तम का तना वितान।
संतति जननी जनक का,कर सेवा सम्मान।
आजीवन रहते सुखी,तज अनदेखी बान।।
अनदेखी पति की करे,उचित नहीं यह बात।
दंपति के कैसे कटें,सुखमय दिन या रात।।
आओ हम त्यागें सभी,अनदेखी का रोग।
निष्पादन करते रहें, निज काजों का योग।।
🪴शुभमस्तु !
23.11.2022◆1.45 पतन्म मार्तण्डस्य।
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