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✍️ शब्दकार ©
🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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लगती हमको धूप सुहानी।
जाड़े की कहलाती रानी।।
जब जाड़े का मौसम आता।
बहुत-बहुत हमको वह भाता।
दादी कहती खूब कहानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
जब होता है विदा अँधेरा।
तब होता है स्वर्ण - सवेरा।।
सूर्य झाँकता खिड़की- छानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
छोड़ रजाई बाहर आते।
दैनिक चर्या में लग जाते।।
करते याद धूप में मानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
बैठ ओट में दादा - दादी।
पहन ओढ़कर तन पर खादी।
धूप सेंकते बात बतानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
जब हम विद्यालय को जाते।
कक्षा जहाँ धूप लगवाते।।
पढ़ते हिंदी गीत जबानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
🪴 शुभमस्तु !
17.11.2022◆7.30 पतनम मार्तण्डस्य
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