गुरुवार, 17 नवंबर 2022

धूप सुहानी 🌅 [ बालगीत ]

 480/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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लगती  हमको  धूप   सुहानी।

जाड़े   की  कहलाती   रानी।।


जब  जाड़े का मौसम  आता।

बहुत-बहुत हमको वह भाता।

दादी  कहती   खूब   कहानी।

लगती  हमको  धूप  सुहानी।।


जब  होता  है   विदा   अँधेरा।

तब  होता  है  स्वर्ण - सवेरा।।

सूर्य झाँकता खिड़की- छानी।

लगती  हमको  धूप  सुहानी।।


छोड़    रजाई    बाहर   आते।

दैनिक   चर्या   में  लग जाते।।

करते  याद   धूप   में    मानी।

लगती  हमको धूप   सुहानी।।


बैठ   ओट   में  दादा -  दादी।

पहन ओढ़कर तन पर खादी।

धूप    सेंकते   बात    बतानी।

लगती हमको धूप   सुहानी।।


जब हम विद्यालय को जाते।

कक्षा जहाँ   धूप   लगवाते।।

पढ़ते  हिंदी   गीत   जबानी।

लगती हमको  धूप सुहानी।।


🪴 शुभमस्तु !


17.11.2022◆7.30 पतनम मार्तण्डस्य

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