बुधवार, 23 नवंबर 2022

जीवन साँसों से बना 🦋 [ दोहा ]

 492/2022


[ साँसें,आँखें,रातें,बातें, घातें]

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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    🦢 सब में एक 🦢

जीवन साँसों से बना,साँसों का ही खेल।

साँसें सदा सँभालना,छूट न  जाए  रेल।।

साँसें स्वेद-सुगंध से,सफल सजाएँ मीत।

गई  साँस आती नहीं,गूँजे अनहद  गीत।।


आँखें दर्पण जीव का,अंतर का प्रतिबिंब।

आँखों में दर्शन करें,फल रसाल या निम्ब।।

आँखें दो  से  चार  हो,जुड़ जातीं   बेतार।

अंतर दिव्य  प्रकाश हो,मानी उर  ने  हार।।


बातें अपने   पेट  में, सीख पचाना   मीत।

रस-विष  के संयोग से,मधुर न हो संगीत।।

मितभाषी  रहना 'शुभम्', जो चाहे आनंद।

बातें  करें न राम जी,मुस्काते शुचि मंद।।


रातें ज्यों मधुयामिनी,यौवन  के  दिन चार।

नहीं जोश में होश खो,जीवन ये  उपहार।।

जीवन में आधे  दिवस, आधी रातें   मित्र।

फूँक-फूँक पग जो रखे,महके जीव-चरित्र।।


वाणी  की घातें  न दे,भरें न उर  के  घाव।

व्याकुलता मन की बढ़े,विकृत होते  भाव।।

घातें कपट कुचाल की,करतीं क्रूर कुमार्ग।

पावनता  आती नहीं,दुर्लभ नर को  स्वर्ग।।


🦢 एक में सब  🦢

साँसें   बातें   कर  रहीं,

                          आँखें   दोनों     मौन।

रातें   बीतीं   छिनक  में,

                              देता  घातें     कौन!!


🪴 शुभमस्तु !


22.11.2022◆8.30

पतनम मार्तण्डस्य।

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