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✍ शब्दकार©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गंध-नासिका का बड़ा,सहज सघन संबंध।
रसना रस ले बाद में, लेती नाक सुगंध।।
ऊँची रखना नाक को,सभी चाहते लोग।।
पर्दे में खोटे करम, मन भी नहीं निरोग।।
सत्कर्मो से नाक का,आसन होता उच्च।
नोचें अपने केश जो,कहलाते वे लुच्च।।
नाक साँस के द्वार दो,इड़ा पिंगला नाम।
प्राणवायु ले दे रही,उच्च नाक के काम।।
पहन नथुनिया नाक में,करती है आकृष्ट।
नारी की शोभा बढ़े,देख नयन हों तुष्ट।।
बेसर सोहे नाक में,खुभी नाक के छेद।
सुंदरता हो सौ गुनी,भूल जाय नर वेद।।
दो नयनों के बीच में , खड़ी भेद - दीवार ।
आँख नहीं लड़ जाएँ दो,रखना नाक सँवार।।
कोई तोता नासिका, कोई जैसे चील।
एक पकौड़ी- सी लगे, दी कर्ता ने छील।।
चीन चबाए नाक से,क्यों अब चने अबोध।
पहले क्यों समझा नहीं,भारत माँ का क्रोध।।
बाल नाक का काँख में,कब तक रक्खे चीन।
लिए कटोरा घूमता,पाक मीत अति दीन।।
होगी दम जब नाक में,रगड़ेगा तू नाक।
रख ले साबित नाक को,ऐ पापी नापाक।।
सदा सिकुड़ती ही रही,तेरी भौं सँग नाक।
जब नकेल हो नाक में,मिले पाक तू खाक।
नहीं नाक पर बैठने, देता मक्खी चीन।
चाल नई चलता रहे , चाहे धरती छीन।।
गुस्सा जिनकी नाक पर,बैठा रहता खूब।
मिले न कोई पात्र जो, चबा रहे वे दूब।।
नाक दबाई मुँह खुला,चीख रहा है चोर।
'शुभम'कहे रख नाक तू,चोर मचाए शोर।।
💐 शुभमस्तु !
01.08.2020 ◆11.00 पूर्वाह्न।
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