शनिवार, 24 जुलाई 2021

षड् ऋतु समुच्चय 🏞️🏕️ ◆ [ दोहा ] ◆


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✍️ शब्दकार ©

🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मम भारतअति पावनी,षड् ऋतुओं का देश

सबका अपना रूप रँग, सबका मोहक वेश।

वसंत 🌻

पहली ऋतु ऋतुराज की,कहते जिसे वसंत।

सुमन खिले कलियाँ नई,विकसी हरी अनंत।


चैत्र  और वैशाख में,आता नव  मधुमास।

सरसों फूले खेत में,बिखरे बौर - सुवास।।


मौसम रम्य सुहावना, सम शीतलता   घाम।

हिमगिरि से हिम रिस रहा,बौरे आम ललाम।


मदनोत्सव  होली मनी, जाग उठा है  काम।

बूढ़े पीपल में अरुण, उगतीं गाभ  अनाम।।


ग्रीष्म🌞

जाते ही  ऋतुराज के,आया गरम   निदाघ।

सूरज नयन तरेरता,ज्यों जंगल में  बाघ।।


लुएँ  चलें  नित भोर से,तन से बहता   स्वेद।

कुम्हलाएँ कलियाँ नरम, लगी पिघलने मेद।।


ताप बढ़ा सूरज चढ़ा,पकतीं फ़सल अनाज।

नष्ट  हुए  कीटाणु भी, नहीं भानु   नाराज़।।


ज्येष्ठ और  आषाढ़ का, है अपना  ही  रंग।

सरिता निर्मल बह रही,निधि से मिली निसंग


पावस⛈️

सावन भादों मास में,पावस करे  किलोल।

ऋतुओं की रानी कहें,पड़ते बाग  हिंडोल।।


नभ से  बरसे नीर जब,बुझे धरा की प्यास।

हरे-हरे तृण उग रहे, बँधी कृषक की आस।।


घरआँगन गलियाँ भरीं,सरिता,सर,तालाब।

पावस आई झूमकर,सुखद समा सँग आब।।


झर-झर  बूँदें  झर  रहीं,बालक नंग - धड़ंग।

नहा रहे  हैं  दौड़कर,लथपथ जल से  अंग।।


शरद 🌝

पावस - मेघों  से  धुला, निर्मल शरदाकाश।

कार्तिक आश्विन मास में,बदला है ऋतु प्राश


वर्षा  बूढ़ी  हो  गई,श्वेत  सुमन में    कास।

लगे  झूमने  वायु  में,किसे  न आते   रास।।


कमल खिले तालाब में,लहराए  नत  धान।

राजहंस की मधुर ध्वनि,ज्यों नूपुर की शान।


शरद-चंद्रिका देखकर,मन - मतंग  की चाल।

कहती  लाओ पास में,कामिनि अपने गाल।।


हेमंत 🔥

ओस - बिंदु  गिरने  लगे,आई ऋतु   हेमंत।

अगहन एवं  पौष  में, कहते ज्ञानी   संत।।


देह -दोष सब शांत हैं,उच्च अग्नि का काल।

कीट-पतंगे नष्ट हैं, तन को मनुज  सँभाल।।


उष्ण  नीर  से  लें  नहा, करें तैल - अभ्यंग।

खट्टा - मीठा  खाइए, उचित लवण भी संग।।


कसरत भी करना सही,बढ़े देह की आग।

ऋतु हेमंत न भूलिए,प्रतिरक्षा हित   जाग।।


शिशिर 🌬️

धवल दिशाएँ हो गईं,शिशिर - शीत की मार।

घना  कोहरा छा रहा , भू- नभ  एकाकार।।


कण-कण भीगा ओस से,अमृत सम है ताप।

देव भानु   नित दे रहे,ग्रहण कीजिए आप।।


तिल -गुड़ के आहार से, तन को करना पुष्ट।

मेवा,पय, प्रिय पाक भी,करते हैं   संतुष्ट।।


माघ और फाल्गुन युगल,संवत्सर मासांत।

'शुभम' हितैषी जीव के,मत रहना उद्भ्रांत।।


🪴 शुभमस्तु !


२४.०७.२०२१◆१०.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।


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