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✍️ शब्दकार©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बड़ी ही कृपा की जो चले आप आए।
भला आपका हो जो चले आप आए।।
बिना गर्ज़ के एक हिलता न पत्ता,
बल्लियों दिल उछलता चले आप आए।
कूपों में अपने घुमड़ते हैं दादुर,
कुआँ छोड़ अपना चले आप आए।
खाए हैं बतासे बातों के हमने,
बात बिगड़ी को बनाने चले आप आए।
किसी और की है न चिंता किसी को,
छोड़ अपनी भी खुमारी चले आप आए।
कहता है समाजी मगर दूर जग से,
समझ आप अपना चले आप आए।
'शुभम' रंग दुनिया ये बदले हजारों ,
रँग अपना ही जमाने चले आप आए।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०७.२०२१◆११.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
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