बुधवार, 14 जुलाई 2021

कौन किसे टहलाता है 🐕‍🦺 [ गीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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कौन  किसे  नित टहलाता है!

कूकर   वह   आगे  जाता है।।


सुबह   सड़क  पर वे जाते हैं।

लोग सैर   यह   बतलाते  हैं।।

सँग  में  कूकर   भी जाता है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


रुकता  कूकर  वे  रुक जाते।

वहीं  टिके  वे भी ठिठकाते।।

लघुशंका  वह  कर आता है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


दौड़  रहा  पशु  आगे - आगे।

पीछे  खिंचते    भागे-भागे।।

वफ़ादार  वह   कहलाता  है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


पीता   कूकर   दूध -  मलाई।

चाट रहा मुख,गाल ,कलाई।।

साबुन  जल  से नहलाता है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


बड़े  भाग्य वाले  कुछ कूकर।

कुछ मनुजों से  हैं  वे  ऊपर।।

मालिक का दिल बहलाता है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


खेल   कर्म का   है सब भाई।

भोग  रहे  पशु, लोग ,लुगाई।।

यही 'शुभं' लिपि कहलाता है।

कौन किसे नित टहलाता है।।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०७.२०२१◆८.४५पतनम मार्तण्डस्य।


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