मंगलवार, 27 जुलाई 2021

जटिल कहानी 🦦 [ चौपाई ]


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✍️ शब्दकार ©

🛩️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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राजनीति  की    करनी  ऐसी।

करे   देश   की   ऐसी- तैसी।।

पढ़ना- लिखना  व्यर्थ बतावें।

अपने  को  सिरमौर  जतावें।।


अधिकारी  को  नाच नचाना।

दंगम - दंगा    रोज़   मचाना।

नाचे   डंडा  उच्च   प्रशासन।

मात्र  ज़रूरी   झूठा  भाषन।।


कानूनों    के   सब    निर्माता।

करने का क्या  तृण भर नाता?

कर्म   न   इनसे   कोई   छूटा।

जो मन  चाहा  उसको लूटा।।


जब  चाहें तब नियम बदलते।

जनता  को नित ही वे छलते।।

भावें  नहीं   पढ़े नर -  नारी।।

समझ   रहे  उनको  बीमारी।।


भोलों को ठगते  बन फाँसी।

बात सही है समझ न हाँसी।

मिल जाएँ भगवान भले ही।

नेता मिलें न बिना छले ही।।


चले नाक की सीध  अबोला।

चमचे   थाम   रहे  हैं झोला।।

जिसकी लंबी  पूँछ भेड़ की।

उसकी उतनी बड़ी पूछ भी।।


राजनीति  मकड़ी का जाला।

जो फँस जाए उलटा डाला।।

माल तिजोरी सिर गलमाला।

शयन सेज पर गरम मसाला।


धोखे की  टटिया   के रक्षक।

आम जनों के चूसक भक्षक।।

निज घर के उद्धारक तारक।

निर्धन जन के सब संहारक।।


काला  अक्षर   सबको  हाँके।

पढ़ा-लिखा या करता फाँके।।

कितना कहें  रबर - सी तानें।

बात 'शुभम' की साँची मानें।।


राजनीति की जटिल कहानी।

नित नवीन  नाले  का पानी।।

नेता -  कथनी  सदा  अनंता।

करनी में ऋषि   साँचे संता।।


🪴 शुभमस्तु !


२७.०७.२०२१◆६.१५ पत नम मार्तण्डस्य।

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