रविवार, 25 जुलाई 2021

ग़ज़ल 🌴


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✍️ शब्दकार ©

🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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दीवारें  चारों   बंद हैं तो खिड़कियाँ भी क्या करें,

वातायनों  में रोध है ये सिसकियाँ भी क्या करें।


आँख    में   पानी   नहीं  है पी गए  सारी  हया,

इस  क़दर  बेशर्म हैं  वे झिड़कियाँ भी क्या करें।


देवरानी    जींस में सज सड़क पर इठला रही,

देखती   हैं चाल बदली बड़कियाँ भी क्या करें।


न्यूनतम   कपड़े पहनकर मम्मियाँ बाज़ार में,

स्वयं ही सिखला रही हैं लड़कियाँ भी क्या करें।


भजन   गाती    दादियाँ  उठकर सकारे रोज़ ही,

ब्रह्मवेला  में विटप पर पिड़कियाँ भी क्या करें।


सारे   घर में     रेंगतीं हैं   मूक छिपकलियाँ यहाँ,

जाल   अपने   पूरती   वे मकड़ियाँ भी क्या करें।


बाप    की   दो बात   भी मानें   नहीं औलाद अब,

'शुभम'चिल्लाते रहो अब झिड़कियाँ भी क्या करें।


🪴 शुभमस्तु  !


२५.०७.२०२१◆१०.००आरोहणम मार्तण्डस्य।

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