शनिवार, 24 जुलाई 2021

करता सत गुरु को नमन 🙏 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार© 

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम

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करता सत गुरु को नमन, जिनसे पाया ज्ञान।

जननी मेरी प्रथम गुरु,करता उनका ध्यान।।


पूज्य जनक गुरु दूसरे,शत शत उन्हें प्रनाम।

जिनके पावन नेह से,उपजा 'शुभम'अनाम।।


विद्या गुरुजन  से  पढ़ी,पाया अक्षर   ज्ञान।

नमन उन्हें करता 'शुभम',एवं नित सम्मान।।


बड़े आयु में श्रेष्ठ जन,वे सब गुरु का मान।

सीख मिली उनसे बड़ी,प्रेरक मनुज महान।


जीव  जंतु  तरु  बेल भी, देते शिक्षा  नीक।

वे  भी  गुरु मेरे  सभी,बनवाते नव  लीक।।


जिन ग्रंथों को पढ़ लिया,या पढ़ने  को शेष।

शिक्षा   देते  वे  सभी,कहते बनें  न  मेष।।


चींटी  से    संघर्ष   का, सीखा उत्तम   पाठ।

गिर-गिर जो चढ़ती सदा,गाँठ लगा लीं आठ।


काजल सी कोकिल भली,वाणी है अनमोल।

सिखलाती   बोलो  'शुभम',मेरे जैसे   बोल।।


कुक्कुड़  कूँ  की बाँग ने,हमें जगाया  रोज़।

सदा  समय  से जागिए, बचा रहेगा  ओज।।


उदय अस्त रवि सोम के,कहते समय अमोल

गया समय लौटा नहीं, कानों को ले  खोल।।


पाहन पुजता है तभी,जब वह लिया  तराश।

गुरु तराशते हैं हमें, देकर दिव्य    प्रकाश।।


कुंभकार - गुरु मृत्तिका,को देते  नव  रूप।

कोई  चढ़ता  शृंग पर,कोई भव  के  कूप।।


गुरु से रखता जो कपट,कभी न  हो उद्धार।

उऋण न होता जन्म में,होती है  जग  हार।।


गुरु  चरणामृत पान कर,हुए कृष्ण  श्रीराम।

एकलव्य की साधना,करता 'शुभम' प्रनाम।


गुरु  गुरुता में श्रेष्ठ  है,करना यह  स्वीकार।

दुग्ध  सिंहनी  का नहीं,जाता कंचन   पार।।


सतगुरु का सुमिरन करूँ, करता उर सम्मान

'शुभम'सकल आभार से,लियाआपसे ज्ञान।


🪴 शुभमस्तु !


२४.०७.२०२१◆३.१५पतनम मार्तण्डस्य।

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