शनिवार, 31 जुलाई 2021

गप्पू जी 🤓 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

🧸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                       -1-

गप्पू जी  गपिया रहे, हमको सारा   ज्ञान।

विषय न छूटा एक भी,कहो हमें भगवान।।

कहो हमें भगवान,नीति सब ही हम जानें।

मानें  एक  न  बात,रबर अपनी ही  तानें।।

'शुभम'समझ पर्याय,कहो चाहे  तुम टप्पू।

गप्पों  के  सिरमौर,कहें आदर से   गप्पू।।


                       -2-

गप्पू जी  की  गप्प  का,कर लें  अनुसंधान।

मिले  नहीं संदर्भ भी,नहीं  ग्रंथ - पहचान।।

नहीं  ग्रंथ - पहचान,हड़प्पा में भी   जाओ।

मोहनजोदड़ काल,शोध कर भी पछताओ।।

'शुभम' ठोक कर ताल, चलाता अपना चप्पू।

डूबे   चाहे    नाव,  कान   से बहरा   गप्पू।।


                        -3-

गप्पू जी अपनी कहें,सुन लें उनकी  बात।

सुनकर भी करते वही,जो मन कहे सुहात।।

जो मन  कहे सुहात,नहीं कोई समझाओ।

दो मत निजी सुझाव,नहीं साँची जतलाओ।।

सर्व  ज्ञान  के  कोष,छोड़ नावों  के  चप्पू।

बहते मन की धार,'शुभम'निधड़क ये गप्पू।।


                       -4-

गप्पू जी के काम के, जन जन बड़े   मुरीद।

गर्दभ  भी  करने  लगे,घोटक जैसी   लीद।।

घोटक  जैसी लीद, वेश गीदड़ ने   बदला।

ओढ़ शेर की खाल,बजाता वन में तबला।।

'शुभम'न समझें आप, वही पपियाता पप्पू।

घनन -घनन का शोर,कर रहे गायक गप्पू।।


                         -5-

गप्पू    जी  के  गाँव में ,आई विकट   बरात।

अनुगामी  हैं  भक्त वे, दिखे न दिन या रात।।

दिखे   न दिन या रात, लगाकर चश्मा आए।

आगे     नवल  प्रभात, अँधेरे पीछे    छाए।।

'शुभम'  मजीरा   ढोल,बजाते गाते   टप्पू।

उन्मादों  में  लीन ,  गाँव  के सारे    गप्पू।।


🪴 शुभमस्तु !


३१.०७.२०२१◆१२.१५ पतनम मार्तण्डस्य।

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