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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पास गाँव के जंगल भारी।
गए सैर बालक, नर, नारी।।
घने कँटीले पेड़ लताएँ।
लिपट-लिपट कपड़ों में जाएँ।
कीकर,शमी ,करील खड़े थे।
शीशम, पीपल बड़े- बड़े थे।।
पेड़ों पर थीं घनी लताएँ।
कितनी सुन्दर तुम्हें बताएँ!!
रंग - बिरंगे फूल खिल रहे।
आपस में सब झूम हिल रहे।।
देखे हिरन, सियार , लोमड़ी।
हाथी की थी टाँग भी बड़ी।।
झाड़ी में खरगोश छिपे थे।
वानर, बहु लंगूर मिले थे।।
कलकल कर सरिता बहती थी।
लगता था वह कुछ कहती थी।।
सरिता में हम खूब नहाए।
फूल बीन कर नीर बहाए।।
संग हमारे थे दादा जी।
खाए वन फल हमने ताजी।।
शेर नहीं थे भालू, चीता।
'शुभम'दिवस मंगलमय बीता।
🪴 शुभमस्तु !
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