शनिवार, 17 जुलाई 2021

काका काकी : कोरोना संवाद🗣️ [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

काका  काकी   से कहें,कोरोना   का काल।

मुखचोली मुख पर लगा,अपनी देह सँभाल।

अपनी देह सँभाल, लहर पर लहर आ रही।

त्राहि-त्राहि का शोर,तीसरी गज़ब  ला रही।।

'शुभम' कहे विज्ञान,बचाएँ तन का    नाका।

काकी की  मुस्कान,देख हँसते  हैं   काका।।


                          -2-

काका जी की सीख को,सुनकर अपने कान।

काकी ने  सोचा  यही, दूँगी मैं  अब ध्यान।।

दूँगी  मैं  अब  ध्यान,लगा लूँगी   मुखचोली।

साबुन  से  धो हाथ,बात उनकी  अनमोली।।

'शुभम'  रहूँगी  दूर,बनाकर दो गज   नाका।

हित की  करते  बात,हमारे साजन  काका।।


                             -3-

काका   कहते  भीड़  से,रहना काकी    दूर।

लापरवाही    जो    करे,  होगा  चकनाचूर ।।

होगा  चकनाचूर ,  जान   के पड़ते   लाले।

गँवई  सोच  न नीक,घुसें जब यम के भाले।।

'शुभम'न बनना मूढ़,पड़े जब तन पर डाका।

बचे  न  तन में प्राण,सही कहते  हैं  काका।।


                            -4-

काका काकी  का हुआ ,आपस में  संवाद।

काकी बोली 'आपसे, करती हूँ   फ़रियाद।।

करती हूँ फ़रियाद, सभी को यह समझाओ।

रखना पूर्ण बचाव,तभी निज प्राण बचाओ।

पीना  सलिल   उबाल,बना दें ऐसा    नाका।

'शुभम' नआए रोग, निवेदन तुमसे काका।।'


                            -5-

काका जी  कहने लगे,गँवई, मूढ़ , किसान।

बात  नहीं मानें  कभी,अहंकार  में   जान।।

अहंकार में  जान,बहे दिन - रात   पसीना।

हमें न  होगा   रोग, हमें  आता है    जीना।।

'शुभम'न कवि की बात,मानते पड़ता डाका।

चिल्लाते  तब हाय,  बचा लो मेरे  काका।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०७.२०२१◆१०.१५ आरोहणम मार्तण्डस्य।

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