◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
⛈️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
घनघोर घटाएँ
नभ में छाईं
चलती पुरवाई
अति मनभाई
हुई तपन की
सहज विदाई।
प्यास धरा की
शांत हो रही,
झर - झर झरतीं
बूँदें ,
नभ से भूपर,
भीग रहे वन ,बाग, खेत
रेत के शुष्क मरुस्थल,
जिधर जा रही दृष्टि
दिखाई देती बस जलवृष्टि,
तृप्त होती है सृष्टि।
बहती पवन
कर रही ज्यों जल आचमन,
बाहर से भीतर तक
भीगे तन - मन,
तोता ,मोर ,पपीहा
कोयल ,गौरैया,
पंक्षी गण
सबके हर्षित कन -कन।
गाय रँभाती,
मिमियाती बकरी,
भरी नीर से
गलियाँ सँकरी,
घर - आँगन में
चले पनारे,
नदिया नाले
यौवन में मदमस्त
मटमैले
नहीं जा सके सँभाले।
बगुले उड़ते
नभ में ज्यों
दूधिया पंक्तिबद्ध ,
खा रहे केंचुए,
उछल रहे हैं
दादुर करते हैं टर - टर,
झींगुर की झनकार
बनाती तम को गहनतर।
वीर बहूटी निकल पड़ीं
बाहर मेड़ों पर,
छूते ही सिमटी सिकुड़ी
नई वधू सी,
गगनधूर उग आईं
कच्ची छत के ऊपर,
घूरे पर ,
पड़े जहाँ थे ढेर
वहीं कूड़े पर ।
छाई हरियाली,
महक उठी है डाली -डाली
झुकी सलिल भार से
अद्भुत लगी निराली,
पके आम जामुन
खट्टे मीठे,
'शुभम' साधना रत
ज्यों सब मेघ ,
गा रहीं मल्हारें
पड़ रहीं फुहारें
नर -नारी बालक
सब मस्त,
ऋतुओं की रानी
आई है ,
सब करें स्वागत
अभिनन्दन ,
हों व्यस्त
कृषक नर -नारी,
गिरती नभ से रिमझिम
जल की धारी।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०७.२०२१ ◆ ८.३०पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें