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✍️ शब्दकार ©
🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
दुखमय यह संसार है,सुख का न्यून प्रभात
दुख पर्वत-सा सामने,सुख के कण हैं सात
सुख के पल गणनीय हैं,दुख की नाप न तोल
निशिदिन सुख दुख झेलते,मानव के उर गात
-2-
दुख देता जो अन्य को,मिलता उसे न चैन,
पीड़ा ही नित झेलता,रोते हैं दो नैन,
तन से मन से वचन से, नहीं सताओ मीत,
मधुर सत्य बोलें 'शुभम',मुख से अपने बैन।
-3-
कब दुख मिल जाए कहाँ, नहीं पूर्व आभास,
नहीं किसी को दीजिए,मूढ़ मनुज तुम त्रास,
दुखदाता को दुःख का,पल- पल पारावार,
दुख तो तेरे साथ है, घर-घर में नित वास।
-4-
सुख दिन है दुख रात है,आते - जाते नित्य,
दोनों मानव के लिए, जीवन के औचित्य,
धन कुबेर को सर्वसुख,मिलते सदा न मीत,
दुःख न निर्धन को सदा,जीवन 'शुभं'अनित्य।
-5-
सुख - दुख में समता रहे, कहते उसे विवेक,
कर्म 'शुभम' करता रहे,है सलाह ये नेक,
चींटी में भी प्राण हैं, इतना सोच विचार,
टर्र-टर्र करना नहीं, ज्यों कूपों में भेक।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०७.२०२१◆११.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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