मंगलवार, 27 जुलाई 2021

दुःख 🔥 [ दोहा- मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार ©

🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

दुखमय यह संसार है,सुख का न्यून  प्रभात

दुख पर्वत-सा सामने,सुख के कण हैं  सात

सुख के पल गणनीय हैं,दुख की नाप न तोल

निशिदिन सुख दुख झेलते,मानव के उर गात


                         -2-

दुख देता जो अन्य को,मिलता उसे न  चैन,

पीड़ा   ही   नित  झेलता,रोते हैं    दो  नैन,

तन से मन से  वचन से,  नहीं सताओ मीत,

मधुर सत्य बोलें 'शुभम',मुख से अपने बैन।


                          -3-

कब दुख मिल जाए कहाँ, नहीं पूर्व आभास,

नहीं किसी को दीजिए,मूढ़ मनुज तुम त्रास,

दुखदाता को दुःख का,पल- पल  पारावार,

दुख  तो तेरे साथ है, घर-घर में  नित वास।


                           -4-

सुख  दिन है  दुख रात है,आते - जाते नित्य,

दोनों  मानव  के लिए, जीवन के   औचित्य,

धन कुबेर को सर्वसुख,मिलते सदा न मीत,

दुःख न निर्धन को सदा,जीवन 'शुभं'अनित्य।


                       -5-

सुख - दुख में समता रहे, कहते उसे विवेक,

कर्म 'शुभम' करता  रहे,है सलाह   ये   नेक,

चींटी  में  भी प्राण   हैं, इतना सोच   विचार,

टर्र-टर्र   करना   नहीं, ज्यों  कूपों  में   भेक।


🪴 शुभमस्तु !


२७.०७.२०२१◆११.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।

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