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✍️ शब्दकार ©
💦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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वर्षा - रानी कर रहीं,नित सोलह शृंगार।
साथ मेघ,चपला सखी, मानसून का प्यार।।
झर झर झर झरने लगीं बूंदें मूक अबाध,
प्यास बुझाती अवनि की,नहीं मानती हार।
चमकी चपला मेघ में,करती ज्योति लकीर,
तड़तड़ तड़की जोर से,भय का लाती ज्वार।
बच्चे नंग - धड़ंग हो, नहा रहे हैं मस्त,
साड़ी चिपकी देह से, गातीं नारि मल्हार।
सरिता पर यौवन चढ़ा,नाले करें किलोल,
नाली गाती गीत - से, आई खेत - बहार।
गुड़िया अपने राम की,दिखती एक न आज,
न ही केंचुआ रेंगते, आँगन में इस बार।
बगुलों का आहार तो,कीट- पतंग अनेक,
हल के पीछे मिल रहा,खाते बिना डकार।
सड़कें डूबीं बाढ़ में, गली - गली में शोर,
धान रोपने को चले,कृषक छोड़ घर-द्वार।
प्रकृति - सुंदरी ने पहन, ली है साड़ी सब्ज,
अंकुर नव उगने लगे,पड़ा हरा गलहार।
गौरैया निज नीड़ में, सिमटी-सिकुड़ी आज,
तरु-खोखल में कीर का,छिपा हुआ परिवार।
'शुभम'कलापी नाचते,छत पर खूब सँभाल,
कें-कें बतखें कर रहीं, सर के पास अपार।
🪴 शुभमस्तु !
२३.०७.२०२१◆६.३०पतनम मार्तण्डस्य।
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