गुरुवार, 22 जुलाई 2021

मुस्कान 💋 [ मुक्तक ]

 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार©

💋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

                           -1-

मुस्कान आदमी  के  अधरों में    खेलती  है,

तव दिल का हाल क्या है बाहर धकेलती है,

गदहे   न   मुस्कराते चिड़ियाँ न  श्वान , गायें,

मुस्कान  ग़म का कचरा ठोकर से ठेलती है।


                             -2-

मुस्कान  तव  अधर की आँखों  में आ  गई,

सावन में  नील   घन में चपला ज्यों  भा गई,

आँखों में झाँकीं  आँखें  झुकती गईं  पलक,

होते   ही   अरुण गाल दो रूमानी  छा  गई।


                             -3-

मुस्कान     का     इंसान    से सम्बंध    है,

खिलती  हृदय - कलिका अजब अनुबंध है,

युगल  अधरों   की  सजल भाषा    मुखर,

हो   नहीं   पाती,   जलज   सद   गंध   है।


                             -4-

मुस्कान    से    ही    हम   तुम्हारे हो   गए,

एक    पल    में   ही  अपनपा  खो     गए,

विकट    जादू  -  सा    हुआ कैसे      कहें,

बीज    अँखुआए     उरों    में   बो       गए।


                            -5-

मुस्कान   में  भी   राज छिप जाते     बड़े,

खल    नहीं   पहचान    में  आते    कड़े,

नेह     की    मुस्कान   को पढ़ना    सरल,

आँखें    लेतीं    चीन्हें    जब आंखें  लड़े।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०७.२०२३◆४.०० पतनम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...