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✍️ शब्दकार©
💋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मुस्कान आदमी के अधरों में खेलती है,
तव दिल का हाल क्या है बाहर धकेलती है,
गदहे न मुस्कराते चिड़ियाँ न श्वान , गायें,
मुस्कान ग़म का कचरा ठोकर से ठेलती है।
-2-
मुस्कान तव अधर की आँखों में आ गई,
सावन में नील घन में चपला ज्यों भा गई,
आँखों में झाँकीं आँखें झुकती गईं पलक,
होते ही अरुण गाल दो रूमानी छा गई।
-3-
मुस्कान का इंसान से सम्बंध है,
खिलती हृदय - कलिका अजब अनुबंध है,
युगल अधरों की सजल भाषा मुखर,
हो नहीं पाती, जलज सद गंध है।
-4-
मुस्कान से ही हम तुम्हारे हो गए,
एक पल में ही अपनपा खो गए,
विकट जादू - सा हुआ कैसे कहें,
बीज अँखुआए उरों में बो गए।
-5-
मुस्कान में भी राज छिप जाते बड़े,
खल नहीं पहचान में आते कड़े,
नेह की मुस्कान को पढ़ना सरल,
आँखें लेतीं चीन्हें जब आंखें लड़े।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०७.२०२३◆४.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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