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✍️ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दिल में हैं समाई तुम्हारी दो आँखें।
भूले न भुलाई तुम्हारी दो आँखें।।
नज़रें हुईं चार जब से हमारी,
पलकों में जा लुकाई तुम्हारी दो आँखें।
तुम्हें देखते देखतीं जब लगन से,
ले आती हैं लुनाई तुम्हारी दो आँखें।
गया ख़्याल मेरा उधर को ज़रा भी,
कनखियों ने सजाई तुम्हारी दो आँखें।
रुखसार तव हो गए लाल सेबी,
करिश्मा - बनके छाई तुम्हारी दो आँखें।
पकड़ा जो कर मैंने नाज़ुक तुम्हारा,
हाँ - हाँ के पक्ष आई तुम्हारी दो आँखें।
'शुभम' चख - करिश्मा का कायल जमाना,
गज़ब क्या न ढाई तुम्हारी दो आँखें।
🪴 शुभमस्तु !
१३.०७.२०२१◆२.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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