शनिवार, 3 जुलाई 2021

मुखचोली'- आख्यान 🔷 [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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वृषभ- मुसीका से हुआ, मुखचोली अवतार।

लगा रहे हैं मनुज भी,नगर गाँव  नर -  नार।।


इधर-उधर मुँह मारते, जब कृषकों के  बैल।

कसा मुसीका नाक-मुख,निकली रक्षक गैल।


मानव ने अपना लिया, मुखचोली हथियार।

रक्षक फुफ्फुस का सबल, कोरोना पर वार।।


जान गए हैं नारि-नर, मुखचोली अनिवार्य।

खुले नाक -मुख घूमते,करते अपने कार्य।।


मुखचोली  है   जेब में,या ठोड़ी   आधार।

ले बाइक सरपट उड़े,दौड़े सड़क बज़ार।।


मुखचोली  की आड़ में,छिपे शाह या  चोर।

पहचाने  जाते   नहीं,रात,साँझ या   भोर।।


मुखचोली क्रय कर रहीं, मिला शाटिका रंग।

लाल,हरी, पीली  बहुत,नारी पति  के   संग।।


मुखचोली  में  इत्र का ,दे दें 'शुभम'   बघार।

कोरोना   झाँके  नहीं, इतना करें     सुधार।।


मुखचोली  साड़ी  नहीं,अपनी करें   प्रयोग।

नहीं  पहनना    ननद की, दूर रहेंगे    रोग।।


मुखचोली  फैशन  नहीं,करती सदा बचाव।

बनी  रक्षिता  मनुज की,करे न कोई घाव।।


मुखचोली  को टाँग लें,श्रुति- बन्धों के साथ।

नाक सहित मुख को ढँकें,रोग न पाए पाथ।।


सब अपनी मुखचोलियाँ, रखना घर दो चार।

बदल-बदल कर लें लगा,जब जाएँ घर द्वार।


धोएँ  निज मुखचोलियाँ, साबुन  से हर बार।

धोकर डालें  धूप में,लें फिर मुख  के   द्वार।।


है  युग की  अनिवार्यता, मुखचोली  हे मीत!

हारेंगे   रोगाणु    सब, होगी  तेरी    जीत।।


मुखचोली धारक सदा,रोग मुक्त  ही  जान।

बाहर मत जा तू 'शुभम', दिखलाने मुस्कान।


🪴 शुभमस्तु !


०३.०७.२०२१◆२.३०पतनम मार्तण्डस्य।


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