सोमवार, 12 जुलाई 2021

दोहाविन्यास (दोहा)

 

(ज्ञान, प्रकाश, परमार्थ,संसार, अँधियारा)

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✍️ शब्दकार ©

🍒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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ज्ञान - रूप  मानव सदा,रहे ज्ञान का  रूप।

बिना ज्ञान पशु योनिवत,गिरे तम भरे कूप।।


ज्ञान-ज्योति ज्योतित करे,दूर करे तम  घोर।

मानव बने न काग सम,काँव -काँव का शोर।


रवि-प्रकाश से सृष्टि का,होता सदा विकास।

तम मिट जाता रात का,जग को आता रास।


उल्लू को भाता नहीं,दिन का धवल प्रकाश।

अंधकार  में खुश रहे,भावे तम  का पाश।।


पाया मानव - योनि तू,कर ले जग परमार्थ।

भर  लेते कूकर उदर,क्या जीने का अर्थ।।


बीज  जगत-परमार्थ का,उगे न बंजर खेत।

सफ़ल वही जीना मनुज,जीता जो पर हेत।।


आए  हो संसार  में, करें 'शुभम' सत काम।

यों तो जीते  जीव सब,रहते सदा  अनाम।।


हाल   बड़ा    बेहाल  है, घायल  है   संसार।

उलटी जब सरिता बहे,हित न करे जल धार।


अँधियारे  में बीज का,होता सदा  विकास।

जग उसको तब जानता,ले बाहर आ श्वास।


अँधियारे से ही बढ़ा,अति महत्त्व रवि-कांति।

रूप विरोधाभास का,है तथापि शुभ शांति।।


अँधियारे में ज्ञान का,उगता भानु प्रकाश।

'शुभं'सकल संसार में,हो परमार्थ' सु-प्राश।


सु-प्राश=अच्छी तरह स्वाद लेना।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०७.२०२१◆९.१५ आरोहणम मार्तण्डस्य।

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