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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इतना तो सब जानते, मनुज शांति से दूर।
चिन्ता और तनाव से, है जीवन भरपूर।।
सदा शांति से बैर है, लेता तीर - तनाव।
तन - मन के तूफान ही, देते जन को घाव।।
भौतिक साधन से नहीं ,मिलता सुख संतोष।
तृष्णा मानव में बसी, भरा हृदय में रोष।।
जाते जब तन छोड़कर, मानव तेरे प्राण।
मन अशांत होता इधर,नहीं लेश भर त्राण।।
जाने वाला जा चुके, तब आते हैं लोग।
संवेदन सँग शांति के, शब्द न हरते रोग।।
हुआ दिवंगत आत्मा,भू पर तन निर्जीव।
करें शांति की वंदना, प्रभु से नत सिर ग्रीव।।
जीवन भर को बो लिए, जहरीले विष बीज।
तना अहं की डाल- सा,मानव अद्भुत चीज़।।
शांति चाहने से नहीं,मिलती है पल एक।
उस नर को कैसा कहें,जिसमें नहीं विवेक।।
अंत भला तो सब भला,नर जीवन का मूल।
फूलों की खेती करें, मिलें अंत में फूल।।
शांति अचानक शून्य से,गिरे न तेरे अंक।
जीता है जो भ्रांति में,गिरता ही है पंक।।
आदि अंत अरु मध्य का,कर ले'शुभं'विचार।
जो तुझको दे पुष्प को,करना नहीं उधार।।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०७.२०२१◆९.१५पतनम मार्तण्डस्य।
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