मंगलवार, 27 जुलाई 2021

पंडुक गाती भजन सकारे 🐦 [ बालगीत ]

 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🐦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

रहती   है    नित    मेरे   द्वारे।

पंडुक  गाती   भजन सकारे।।


लता - कुंज  में   नीड़ बना है।

पत्तों  का  लघु  घेर  घना  है।।

चमक  रहे   हैं  नभ  में  तारे।

पंडुक  गाती भजन   सकारे।।


पिड़कुलिया वह कहलाती है।

पूरे   घर   के   मन  भाती है।।

समझाती प्रभु की महिमा रे।

पंडुक  गाती  भजन  सकारे।।


घूघी,  कुमरी   वही  फ़ाख्ता।

ईंटाया  ,पंडक  जग कहता।।

और  पेंडुकी   भी   कहता रे।

पंडुक  गाती  भजन सकारे।।


रंग  ईंट - सा   या  हो   भूरा।

नर ग्रीवा   पर    कंठा  पूरा।।

छोटे  कंकड़   भी   चुगता रे।

पंडुक  गाती  भजन सकारे।।


तुर - तुत्तू   तुर -तुत्तू  का स्वर।

कानों को  लगता  है मनहर।।

'शुभम' न सुनकर थकते हारे।

पंडुक  गाती भजन   सकारे।।


🪴 शुभमस्तु !


२७.०७.२०२१◆९.००आरोहणम मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...