रविवार, 25 जुलाई 2021

ग़ज़ल 🌻


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

जिस       साँचे    में    ढल  पाओगे।

वैसा     -     वैसा       फ़ल   पाओगे।।


खोदोगे        श्रम       की  सुरसरिता,

तब         ही       गंगाजल   पाओगे।


रहना    जो     परिजीवी    बन  कर,

अपने       को     ही    छल पाओगे।


दोगे   यदि    तुम     दुःख   किसी  को,

रात   न    दिन        तुम    कल पाओगे।


कर    दोगे      बरबाद     समय   ख़ुद ,

अपने      ही       कर     मल  पाओगे।


शठता    में     ख़ुद       को भुला  दिया,  

जीवन      में      नित      खल  पाओगे।


जब      'शुभम'        गहन  गोता    लोगे,

सागर     का       भी      तल  पाओगे।


 🪴 शुभमस्तु !


२५.०७.२०२१◆८.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...