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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जिस साँचे में ढल पाओगे।
वैसा - वैसा फ़ल पाओगे।।
खोदोगे श्रम की सुरसरिता,
तब ही गंगाजल पाओगे।
रहना जो परिजीवी बन कर,
अपने को ही छल पाओगे।
दोगे यदि तुम दुःख किसी को,
रात न दिन तुम कल पाओगे।
कर दोगे बरबाद समय ख़ुद ,
अपने ही कर मल पाओगे।
शठता में ख़ुद को भुला दिया,
जीवन में नित खल पाओगे।
जब 'शुभम' गहन गोता लोगे,
सागर का भी तल पाओगे।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०७.२०२१◆८.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।
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