मंगलवार, 20 जुलाई 2021

भीगी - भीगी सुबह 🌦️ [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🌦️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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भीगी - भीगी   सुबह    हो  गई।

मेघों की  यह  विजय पय मई।।


देखो    काले     बादल   आए।

खेत, बाग,  वन  में  वे   छाए।।

तपन  भानु  की  कहीं  खो गई।

भीगी - भीगी   सुबह   हो गई।।


बादल   गरजे      भूरे   - काले।

लगे    उमड़ने     बड़े   निराले।।

बिजली   चमकी   लुएँ  लो गई।

भीगी -  भीगी   सुबह   हो गई।।


घर,आँगन  बरसा  अति पानी।

 बाहर  मत  जा   कहती रानी।।

छत - गलियों  की  धूल  धो गई।

भीगी -  भीगी   सुबह  हो गई।।


चलते  छत  के    सभी  पनाले।

नग्न    नहाते   हम   मतवाले।।

कीचड़    बहकर    दूर   हो गई।

भीगी  - भीगी    सुबह   हो गई।।


चिड़ियाँ   छिप  बैठीं झाड़ों में।

बकरी , भेड़ें    हैं      बाड़ों   में।।

गौरैया    निज   नीड़   रो  गई।

भीगी - भीगी   सुबह   हो गई।।


सभी  किसान मगन हैं मन में।

शशक हिरन छिपते घन वन में।।

'शुभम'भानु की किरण सो गई।

भीगी - भीगी   सुबह   हो  गई।।


🪴 शुभमस्तु !


२०.०७.२०२१◆९.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।

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