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✍️ शब्दकार ©
🌦️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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भीगी - भीगी सुबह हो गई।
मेघों की यह विजय पय मई।।
देखो काले बादल आए।
खेत, बाग, वन में वे छाए।।
तपन भानु की कहीं खो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
बादल गरजे भूरे - काले।
लगे उमड़ने बड़े निराले।।
बिजली चमकी लुएँ लो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
घर,आँगन बरसा अति पानी।
बाहर मत जा कहती रानी।।
छत - गलियों की धूल धो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
चलते छत के सभी पनाले।
नग्न नहाते हम मतवाले।।
कीचड़ बहकर दूर हो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
चिड़ियाँ छिप बैठीं झाड़ों में।
बकरी , भेड़ें हैं बाड़ों में।।
गौरैया निज नीड़ रो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
सभी किसान मगन हैं मन में।
शशक हिरन छिपते घन वन में।।
'शुभम'भानु की किरण सो गई।
भीगी - भीगी सुबह हो गई।।
🪴 शुभमस्तु !
२०.०७.२०२१◆९.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
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