138/2023
[कस्तूरी,टेसू,दादरा,चकोरी,चौपाल]
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✍️ शब्दकार ©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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⛲ सब में एक ⛲
उगे न कस्तूरी वहाँ, जहाँ उगे यव धान।
पता न नर सारंग को, नहीं स्रोत- संज्ञान।।
कस्तूरी- सी तुम बसी, मेरे उर के बीच।
आनंदित प्रतिपल करे,दिखे न चक्षु -नगीच।।
लाल-लाल टेसू खिले,सुमन हजारों भव्य।
लगी वनों में आग-सी,छटा छिटकती नव्य।।
रदपुट में मुस्कान है,ज्यों टेसू के फूल।
बाले ! कैसे त्याग वन,राह गए हैं भूल।।
'शुभम्' दादरा- ताल में,भाव प्रमुख शृंगार।
गति ठुमरी से तीव्र है, गा न कहरवा यार।।
बोल दादरा ताल के, शास्त्रीय संगीत।
जो जाने संज्ञान ले ,सहज न सबको मीत।।
बनी चकोरी घूमती,देख शरद का सोम।
मैं अवनी की पक्षिणी,नीला ऊँचा व्योम।।
कंद चकोरी का बड़ा,बहु उपयोगी मीत।
शोभित नीले फूल हैं,कर्कट भी भयभीत।।
चौके से चौपाल तक,जिनकी परिधि ससीम
नेता चौकी के रहें, क्यों चौराहा - भीम??
पंचों ने चौपाल पर,किया नहीं सत न्याय।
जाति-पक्ष-अन्याय से,मरी धर्म की गाय।।
⛲ एक में सब ⛲
फूल चकोरी बैंजनी,
टेसू लगा गुलाल।
कस्तूरी मृग दादरा,
गाता वन - चौपाल।।
🪴शुभमस्तु !
28.03.2023◆11.30 प.मा.
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