सोमवार, 27 मार्च 2023

धर्म -ध्वजा की आड़ 🪁 [ सोरठा ]

 121/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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ले जाना है धर्म, प्रगति पंथ पर  देश  को।

करना है सत्कर्म, सभी नागरिक सोच लें।।

होना है अनिवार्य,प्रगति नहीं तो  पतन  ही।

बनें सभी जन आर्य, मनसा वाचा कर्मणा।।


श्रेष्ठ प्रगति का मूल,सारे जीव समाज  की।

सबके ही अनुकूल,सबसे हिल-मिलकर रहें।

भर  लेते  हैं  श्वान, अपना-अपना  पेट तो।

सच्चा  वह  इंसान, सर्व प्रगति - सन्नद्ध हो।।


नेता हैं क्यों  लीन,पशुवत लूट - खसोट  में।

करें प्रगति नर हीन, कैसे देश- समाज  की।।

लूट रहे हैं  देश, धर्म - ध्वजा की  आड़  में।

बदल मुखौटे वेश,प्रगति शून्य बक भक्त वे।।


शोषण  में  संलीन,ढोंगी व्यभिचारी सभी।

सदा प्रगति से हीन,धन नारी के  लालची।।

मूढ़  छात्र  विद्वान,  नकल परीक्षा  में करें।

मेरा देश  महान,प्रगति झोंकती  भाड़  ही।।


क्रय  कीं धन  से चार,डिग्री कर  में  सोहतीं।

उत्कोची  व्यापार, प्रगति न होगी  देश  की।।

प्रगति - प्रगति के गीत, नेताजी  चिल्ला रहे।

काम  सभी  विपरीत, कंचन से कमरे  भरे।।


नाटक नेता-वृंद का,'शुभम्' प्रगति  का खेल।

दौड़ाना   छल -  छंद  का, भ्रष्टाचारी    रेल।।


🪴शुभमस्तु !


16.03.2023◆7.00आ.मा.

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