113/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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हाल जानते प्रभु कण -कण का।
कवि जाने त्यों मात्रा -गण का।।
अंतरतम में मनुज झाँक ले,
मैल हटाए क्यों दर्पण का?
चिंता निज चरित्र की करता,
सदुपयोग करता प्रति क्षण का।
सीमा पर वह नियत अवस्थित,
मान जानता प्राणार्पण का।
पाहन पिघल बना द्रव पानी,
मोल समझता गिरि प्रसवण का।
कब तक प्राण शेष हैं तन में,
सैनिक जाने सत उस रण का।
'शुभम्' सँभलकर चलना पथ में,
समझ नहीं नर - जीवन पण का।
🪴 शुभमस्तु !
13.03.2023◆7.45आ.मा.
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