मंगलवार, 7 मार्च 2023

गोरी के गुलाल गाल 🎊 [मनहरण घनाक्षरी ]

 108/2023

     

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✍️ शब्दकार ©

🎊 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

लाल-लाल,लाल-लाल,गोरी के गुलाल गाल,

श्याम रंग  बाल  लाल,  होली मनभाई   है।

अधरों की ओप लाल,आँख बंद नाक लाल,

पीत भए   हाथ  लाल,  देह  पै लुनाई    है।।

खोई-खोई रही  सोच, बंद  भई चारु  चोंच,

छीनि  लई देह  लोच,  रंग  की  पुताई   है।

खेलि गयौ रंग कौन, छीनि लियौ गात लौंन,

कैसे  करि  जाऊं  भौन,सोचि कें  डराई  है।।

  

                        -2-

गालनु  पै  हाथ  धरे ,   हाथनु गुलाल   भरे,

नैन  बंद  ध्यान  करे,    गोरी हुरिहाई    है।

अंग-अंग लाल पीत,छोड़ि कें अनीत -नीत,

रंग  खेलती अभीत, ब्रज  की लुगाई    है।।

रंग  की  तरंग  नई, खेलि  रही     मोदमई,

छोड़ि  गाम  धाम गई ,पिया से  सवाई    है।

मन में उमंग एक, खेलिबे  की लगी   टेक,

हाथ  मुद्रिका  अनेक,  मार की  मलाई   है।।


                        -3-

कोरी है कमोरी एक, ब्रज की तू गोरी नेक,

रंग   में    समोई    टेक,   भई  मतवारी  है।

लाल औऱ पीत रंग,थोड़ी-थोड़ी  पिए   भंग,

मन में जागी   उमंग, काम की   सवारी है।।

बिखरे हैं मत्त बाल ,लाल  पीत   वर्ण गाल,

बिंदिया   सजाए   भाल, नारि हुरिहारी   है। 

रूप की तू धूप - छाँव,डोलि रही गाँव- ठाँव,

लाल  देह  हाथ  पाँव, काम  ने निखारी  है।। 


                        -4-

साँवरे कौ   ध्यान  करि,  देह में  तरंग   धरि,

मन  में    उमंग  भरि,   रंगनु निखारी     है।

ब्रज की  तू मत्त गोरी,रंग की सुरंग    बोरी,

चली  आई  चोरी - चोरी, कामदेव ढारी है।।

रंग कौ धमाल लाल, खेलिबे की ठोंकि ताल,

रँगे भए  गाल  भाल,  साँचे  में  उतारी   है।

तानि लियौ काम बान,नाहिं रह्यौ देह भान,

होठ लाल बिना पान, भाव की  अनारी  है।।


🪴शुभमस्तु !


07.03.2023◆9.15

आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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