102/2023
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छंद विधान:
1. यह 23 वर्णों का वर्णिक छंद है।
2.इसमें सात भगण (211) +2 गुरु. होते हैं।
3.यह छंद अपने चार चरणों पर मतवाले (मत्त) हाथी (गयन्द) की चाल से अग्रगामी होता है।
4.इसके चारों पद समतुकांत होते हैं।
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
भारत की सिरमौर प्रभा नित,
देश विदेशनु में शुभ छाई।
काँपि रहे अँगरेज अमेरिकि,
चीन मलेछउ काँपत भाई।।
नारि न छोड़ि चलें मरजादहु,
पौरुष को नहिं देउ मिटाई।।
मेष बने मति कूप गिरौ जन,
तौ तुम विश्व करौ प्रभुताई।।
-2-
भारत में रँग खेलि रहे जन,
स्याम सखा ब्रज के नर-नारी।
रंग लपेटि रहौ मुख पै इत,
कोउ चलाइ रहौ पिचकारी।।
कीचड़ धूरि लगाय रहे नर,
लाल गुलाल उड़ावत भारी।
घूँघट में ब्रज-नारि नचें सिग,
काजर नैन लगावति सारी।।
-3-
भारत के रसिया अब जानहु,
छैल बड़े रँग रास रचाते।
ढोल बजाइ सजाइ लुगाइनु,
आँगन बीच धमाल मचाते।।
रंग तरंगनु में गिरि जावहिं,
पीवत वारुनि नारि रिझाते।
आजु चलौ ब्रज कुंज गली तुम,
पीठि लठा परते न अघाते।।
-4-
भारत की नदियाँ करि सिंचन,
जीव लता तरु प्यास बुझातीं।
धीर धरे गिरि मौन खड़े नित,
धार धड़ाधड़ गंग सजातीं।।
सागर रत्न अपार भरे बहु,
जीभर स्याम घटा बरसातीं।
मेदिनि अन्न भरें भुव जीवन,
कोकिल गावति गीत सुनातीं।।
-5-
भारत की वसुधा बड़भागिनि,
धान्य अनेक सु -शाक उगातीं।
संत बड़े बहु ज्ञानिनु सों नित,
विज्ञ मनिषनु दिव्य सजातीं।।
रामहु स्यामहु जानकि माँ मम,
वीर बली हनुमंतहु पातीं।
बुद्ध प्रबुद्ध कबीर महाकवि,
एक शुभं कवि- काव्य सुहातीं।।
🪴 शुभमस्तु !
०५.०३.२०२३◆०३.०० पतनम् मार्तण्डस्य।
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