सोमवार, 27 मार्च 2023

घर 🏡 [ चौपाई ]

 126/2023

             

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✍️ शब्दकार ©

🏡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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ईंटों  से  मकान   की   रचना।

मत घर की परिभाषा कहना।।

बहती  जहाँ   नेह  की   गंगा।

न हो हया बिन  मानव नंगा।।


सर्प  नहीं  घर  आप    बनाते।

अन्य बने  घर में  घुस  जाते।।

महल अटारी   भवन  सजाए।

संस्कार  से  नर   बन   पाए।।


घर -  घर में   चूल्हे  माटी के।

अनुगामी जन   परिपाटी के।।

सबके घर  की  एक  कहानी।

वही दाल   रोटी  सँग  पानी।।


घरवाली   कहलाती   घरनी।

नैया घर की   पार   उतरनी।।

घरनी बिन घर भूत  - बसेरा।

कहे   न   कोई   मेरा - तेरा।।


छिपता भानु लौट घर आए।

खग पालित पशु शीघ्र सिधाए।

घर में सुख  की सेज हमारी।

नींद जहाँ आती अति प्यारी।।


घर मिल  बस्ती  गाँव  बनाते।

जन-जन के मन को वे भाते।।

हाट   और   बाजार    हमारे।

घर के  ही   विस्तार  निनारे।।


आओ घर  को  सुघर बनाएँ।

नेह   एकता   उर  भर लाएँ।।

'शुभम्' भले  झोंपड़ी हमारी।

रहें नीड़  घर  में नर -  नारी।।


🪴शुभमस्तु !


20.03.2023◆1.00प.मा.

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