अहंकार जिसने किया, हुआ उसी का नाश।
तम वह मानव बुद्धि का,हरता ज्ञान प्रकाश।
सोने की लंका जली,ध्वस्त हुआ परिवार।
अहंकार दशग्रीव का,नाशक बुद्धि-विकार।।
पुतिन आज साक्षात है,अहंकार का रूप।
मिटा रहा यूक्रेन को,मूढ़ बुद्धि - तम भूप।।
रूप वृथा नवयौवने, अहंकार मत पाल।
विनता बन जीना सदा,रूप हरे तव काल।।
यौवन तेरा धूप है, अहंकार है काल।
मति तेरी हरता वही, फैलाए अघ - जाल।।
अहंकार धन बुद्धि तन,सबका करता नाश।
होता मानव में नहीं, संत बने नर काश।।
अहंकार के कीट से,मिटे मनुज का सार।
जीवित दिखता आदमी,पर देता वह मार।।
बुद्धि खोखली कर रहा, अहंकार का कीट।
नहीं किसी को मानता,देता जीवित पीट।।
छिद्र एक जलयान में,करता है जलमग्न।
अहंकार नर- देह में,कर देता मति भग्न।।
अहंकार ने कंस का, छीना बुद्धि विवेक।
कान्हा का दुश्मन बना,त्याग कर्म हर नेक।।
ज्ञानी ध्यानी सूरमा, या हो संत महान।
अहंकार में वे नसे, बड़े - बड़े धनवान।।
-प्रो.(डॉ.)भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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