104/2023
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✍️शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कुंज - गली में आ जा आली।
बाट देखते हैं वनमाली।।
करते फूलों पर अलि गुंजन,
झूम उठी है डाली -डाली।
धूम मची होली की कैसी,
मधुर लगे भाभी की गाली।
डफ, ढोलक, मंजीर बज रहे,
कोई पीट रहा कर ताली।
सभी चाहते रंग लगाएँ,
नखरे दिखा रही जो साली।
नाच रही हैं झूम - झूम कर,
नारि गंदुमी ,गोरी, काली।
इधर रंग की पिचकारी है,
उधर गुलाल भरी है थाली।
बने विदूषक नाच रहे वे,
लहँगा चुनरी ओढ़ निराली।
अनुनय की आ हम तुम नाचें,
भाभी ने भी बात न टाली।
'शुभम्'विदा अब पंक गली से,
होली में सब खाली नाली।
🪴शुभमस्तु !
05.03.2023◆10.15 प.मा.
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