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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जहाँ समर्पण भाव है,वहीं भक्ति का रूप।
तदाकार लेता सदा, होता मूर्त अनूप।।
नम्र समर्पण भाव से,प्रभु के दर जो भक्त।
पाते हैं उद्धार वे, पाद-पदम् अनुरक्त।।
नारी ने सर्वांग से, किया समर्पण गात।
जान हितैषी कंत को,करता 'शुभम्' प्रभात।।
सहज समर्पण भाव से,पति का जीता प्रेम।
देवधाम वह घर बने,सदा कुशल सह क्षेम।।
शिष्य चाहता ज्ञान का,उज्ज्वल'शुभं'प्रभात।
करे समर्पण भाव से,गुरु को धी,मन,गात।।
'शुभम्' समर्पण भाव में,मिट जाता अज्ञान।
सेवाभावी शिष्य का,तनता विशद वितान।।
सीमा पर प्रहरी खड़ा,लिए समर्पण भाव।
दारा,घर, संतति तजे, भरे देश के घाव।।
सेवा हित निज राष्ट्र की,भेजा हृदय निकाल।
धन्य समर्पण तात का,जननी हुई निहाल।।
जनसेवा में जो करे,सहज समर्पण मीत।
प्रभु उसको सामर्थ्य दें,सदा मिले नित जीत।
स्वार्थ भरी यदि सोच हो,झूठा शोषक गिद्ध।
झूठ समर्पण बाहरी, चोर लुटेरा सिद्ध।।
🪴शुभमस्तु !
27.03.2023◆11.45आ.मा.
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