सोमवार, 6 मार्च 2023

होली 🎊🎊 [ कुंडलिया ]

 101/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

होली  आ जा  खेल जा, मेरे प्यारे     श्याम।

मैं  गोरी  ब्रजगाम   की,गोकुल  तेरा  धाम।।

गोकुल     तेरा   धाम, नहीं बरजोरी    भावें।

दे   तू  वंशी - तान ,गीत मिल  गोपी   गावें।।

'शुभं'समझ ले श्याम,तनिक मत छूना चोली।

रँग - गुलाल से खेल, हमारे सँग  तू   होली।।


                         -2 

होली ऋतु मधुमास का, उत्सव   है  रंगीन।

फूल खिलें कलियाँ हँसें,दिखें  एक के तीन।

दिखें  एक  के  तीन,भाँग जब पीलें  ज्यादा।

पुष्ट     पयोधर   पीन, छोड़  देते   मर्यादा।।

मलते 'शुभं' गुलाल,गाल मुख कुच दो चोली।

शर्माती   ब्रजनारि, खेलतीं  रँग भर   होली।।


                         -3-

होली   में   हँसने  लगे,लाल गुलाबी     रंग।

पीपल-अधर गुलाल-से,रँग -रँग दहे अनंग।।

रँग - रँग   दहे  अनंग,ओप ही बदली  सारी।

घूमें  मस्त  मलंग,गाँव  के सब   नर - नारी।।

'शुभम्' चना गोधूम,नाचते भर- भर झोली।

भौंरे   लेते    चूम,  फूल   से खेलें    होली।।


                         -4-

होली में  देखो  खिले, पाटल लाल  पलास।

गेंदा  गदराया   हुआ, फैली मधुर   सुवास।।

फैली  मधुर  सुवास,मटर रहिला   रँगराते।

कोकिल के मधु बोल'शुभं' कानों को भाते।

ले  पिचकारी  श्याम, चले  हैं रँगने   चोली।

राधा - रूप  निहार,कुंज   में खेलें   होली।।


                         -5-

होली  में  करतीं  नहीं, हुरियारी  सुविचार।

बाबा  भी  देवर  दिखे,  देती भर  रँग  डार।।

देती  भर  रँग  डार, जेठ की लाज  न आवे।

भर- भर   डाले   रंग,  नहीं थोड़ा सकुचावे।

'शुभम्' हाल  बेहाल ,हाथ भर चंदन  रोली।

करता  तंग  अनंग, भाँग  पी खेले   होली।।


🪴शुभमस्तु !


05.03.2023◆4.30आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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