106/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कर्तव्य - पथ चलना न जाने,
जो करे वह सत्य माने,
धर्म -अधर्म की वीथियों में,
हेकड़ी के तीर ताने।1।
अधिकार की लड़ता लड़ाई,
कर्तव्य से हिंसक कसाई,
धर्म -अधर्म चिंतन वृथा फिर,
नाप निज ऊँचाई -निचाई।2।
मर्म पाहन के बने हैं,
गर्व में ऊँचे तने हैं,
धर्म -अधर्म - व्याख्या बताते,
अघ-ओघ में लिथड़े सने हैं।3।
गेरुआ तन पर फहरता,
देह पर ध्वज - सा लहरता,
पेट भरता भाषणों से,
धर्म-अधर्म क्या औऱ करता?4।
जानते सब धर्म क्या है?
मानते दुष्कर्म क्या है?
धर्म -अधर्म का जाल भारी,
जानता सत्कर्म क्या है?5।
🪴शुभमस्तु !
06.03.2023◆11.45 आ.मा.
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