97/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कौन नहीं नर चाहता, करना निज उद्धार।
दुष्कर्मों के पाश में,फँसता विविध प्रकार।।
सत्कर्मों के साथ में, करना प्रभु की भक्ति।
मीत तभी उद्धार है,सँग हो नैतिक शक्ति।।
बिना कर्म सद्धर्म के, कैसे हो उद्धार।
जिस पथ पर चलना तुझे,वैसा ही उपचार।।
योनि -योनि भटका रहा,नित चौरासी लाख।
कर अपना उद्धार तू, बना धर्म की शाख।।
उद्धारक प्रभु राम हैं, लगन लगा नर मूढ़।
तब तेरा उद्धार हो,त्याग पंथ निज रूढ़।।
जनक जननि गुरुदेव का,जहाँ नहीं सम्मान।
नहीं वहाँ उद्धार भी,भटके ज्यों खर श्वान।।
अपने प्रियवर शिष्य का,करते गुरु उद्धार।
सतपथ दिखलाते सदा,नर को सभी प्रकार।
अपने ही उद्धार की,लगन न उचित विवेक।
वे नर भटकें ढोर -से,करते काज न नेक।।
जीवन-साथी नारि-नर,दें आजीवन साथ।
दोनों का उद्धार हो,चार -चार हों हाथ।।
ईर्ष्या,द्वेष, अनीति से, बिगड़ें सारे काम।
उस नर का उद्धार क्यों,जीवन नहीं ललाम।।
बड़भागी को योनि नर,मिले एक ही बार।
चले नीति सद्धर्म से, करते प्रभु उद्धार।।
🪴शुभमस्तु !
01.03.2023◆7.30 आ.मा.
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