सोमवार, 13 मार्च 2023

छल-बल सदा अनीति 🙊 [ दोहा ]

 114/2023


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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छल-बल सदा अनीति है, बचना इससे मीत।

शांति छिने मन में बसी,रहे न जीवन-गीत।।

सदा दानवों के लिए,छल-बल की  है  शक्ति।

नीतिपरक शुभ राह है,सत से कर अनुरक्ति।


अघ-ओघों में लीन जो,छल-बल ही आधार।

मलिन  तामसी सोच में,लेता मन   आकार।।

छल-बल  से  देवेश ने,किया भयंकर  पाप।

छली अहल्या छद्म से,ऋषि का झेला शाप।।


छल-बल  से  लंकेश  ने,सीता हरी  पुनीत।

वंश-नाश  अपना किया,हुई राम की जीत।।

छल-बल ही मारीच का,बना मरण का  हेतु।

कनक-हिरण मारा गया,छल का काला केतु।


छल-बल से गुरु द्रोण ने,एकलव्य सँग घात।

किया क्रूर अपराध ही,निम्न कर्म अनुदात।।

दानी  कर्ण महान थे,कुंडल- कवच  प्रदान।

ले छल-बल  से इंद्र ने,मघवासन  अपमान।।


असुर रूप धर देव का,ले छल-बल आधार।

अमृत पीना चाहता, दिया विष्णु  ने  मार।।

छल-बल पाकिस्तान का,झेले नित्य स्वदेश।

समझ रहा आतंक से,बदले निज परिवेश।।


नकल परीक्षा में करें,छल -बल से जो छात्र।

क्षीण करें निज योग्यता,नहीं सुफल के पात्र।


🪴शुभमस्तु!


13.03.2023◆9.45आ.मा.

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