114/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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छल-बल सदा अनीति है, बचना इससे मीत।
शांति छिने मन में बसी,रहे न जीवन-गीत।।
सदा दानवों के लिए,छल-बल की है शक्ति।
नीतिपरक शुभ राह है,सत से कर अनुरक्ति।
अघ-ओघों में लीन जो,छल-बल ही आधार।
मलिन तामसी सोच में,लेता मन आकार।।
छल-बल से देवेश ने,किया भयंकर पाप।
छली अहल्या छद्म से,ऋषि का झेला शाप।।
छल-बल से लंकेश ने,सीता हरी पुनीत।
वंश-नाश अपना किया,हुई राम की जीत।।
छल-बल ही मारीच का,बना मरण का हेतु।
कनक-हिरण मारा गया,छल का काला केतु।
छल-बल से गुरु द्रोण ने,एकलव्य सँग घात।
किया क्रूर अपराध ही,निम्न कर्म अनुदात।।
दानी कर्ण महान थे,कुंडल- कवच प्रदान।
ले छल-बल से इंद्र ने,मघवासन अपमान।।
असुर रूप धर देव का,ले छल-बल आधार।
अमृत पीना चाहता, दिया विष्णु ने मार।।
छल-बल पाकिस्तान का,झेले नित्य स्वदेश।
समझ रहा आतंक से,बदले निज परिवेश।।
नकल परीक्षा में करें,छल -बल से जो छात्र।
क्षीण करें निज योग्यता,नहीं सुफल के पात्र।
🪴शुभमस्तु!
13.03.2023◆9.45आ.मा.
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