105/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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प्रभु की ऐसी अद्भुत माया।
हार -जीत का खेल रचाया।।
कोई हँसता रोता कोई,
कहीं धूप तरुवर की छाया।
करता अहंकार नर जग में,
नहीं जानता नश्वर काया।
बिगड़े शगुन देख कर काना,
माँ को सुत का रूप सुहाया।
हार - जीत में जीवन जीता,
पता न उसको कल क्या खाया?
नारी में माँ भगिनि न माने,
देख सुंदरी - रूप लुभाया।
अपनी जीत सदा ही चाहे,
कर अनीति निज भ्रात हराया।
साधु - संत अपने से हारा,
माया -ठगिनी में मन लाया।
दिवस-निशा में हार -जीत क्या,
दोनों ने शुभ कर्म कराया।
रवि -शशि ने अपनी बारी पर,
दिवस-निशा का रूप सजाया।
हार - जीत का खेल नहीं है,
'शुभम्' गीतिका का रँग लाया।
🪴 शुभमस्तु !
06.03.2023◆11.00 आ.मा.
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