128/2023
[किंशुक,कचनार,गुलमोहर, अमलतास,सेमल]
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✍️शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🪷 सब में एक 🪷
किंशुक जैसे लाल हैं,गोरी युगल कपोल।
अधर लालिमा मोहिनी,आँक न सकता मोल
खिले-खिले किंशुक हँसें,वन की छटा अनूप
आया है मधुमास ये, सब ऋतुओं का भूप।।
छटा बैंजनी सोहती, मेड़ों पर कचनार।
तितली फूलों पर उड़ें, उछले नित्य अपार।।
घूँघट किसलय का हरा,ओढ़ नवल कचनार
ठुमक-ठुमक नाचें सुमन,मादक बहे बयार।।
सिर गुलमोहर का लगा,मोहर नवल वसंत।
तिया निमंत्रण दे रही,घर आ जा प्रिय कंत।।
कलगी गुलमोहर हिले,झूम मत्त ऋतुराज।
मदमाती भृङ्गावली, सजा रही नव साज।।
पीली चादर ओढ़कर, शुभागमन की आस।
खड़ा प्रतीक्षित बाग में,अमलतास अनुप्रास।
अमलतास से होड़ में,गेंदा नाचे नित्य।
भौंरे तितली झूमते, मुस्काते आदित्य।।
शांत चिकित्सक जानिए,सेमल का तरु मीत
छाल, फूल,फल रोगहर,करते गात अभीत।।
कब्ज निवारक फूल है,सेमल का प्रिय जान
अरुण वर्ण मोहक बड़ा,करते जन गुणगान।
🪷 एक में सब 🪷
अमलतास सेमल 'शुभम्',
किंशुक गुल कचनार।
कलगी गुलमोहर खिली,
मधुऋतु के उपहार।।
🪴शुभमस्तु !
22.03.2023◆2.00प.मा.
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