109/2023
[होली, फाग,रंग,अबीर,गुलाल]
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✍️ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🪂 सब में एक 🪂
डफ ढोलक बजने लगे,संग दे रही चंग।
होली खेलें गोपियाँ, बरसातीं नव रंग।।
होली आई साँवरे, हुआ रँगीला भोर।
होती वर्षा रंग की, गली- गली में शोर।।
फाग खेलने के लिए, निकले नंदकिशोर।
संग सुघर ब्रज गोपियाँ, मचा रही हैं रोर।।
फाग बिना होली नहीं,बरसे रंग गुलाल।
धू-धू कर होली जले,आ प्रिय आखत डाल।।
कर में पिचकारी लिए,बरसातीं बहु रंग।
खड़ी छतों पर गोपियाँ,गोप बजाते चंग।।
रंग - बिरंगे हो गए, मुखड़े पीले लाल।
कपड़े फाड़े नाचते, करते गोप धमाल।।
आपस में मिलते गले,मलते भाल अबीर।
कोई पीटे ढोल डफ,गाते मधुर कबीर।।
रंग लगाया प्रेम से , गाया फ़ाग कबीर।
ले दल बल टोली चली, उड़ती धूल अबीर।।
गोरी तेरे गाल हैं, खिलते लाल गुलाल।
लाल रंग खिलता नहीं,चंदन जैसा भाल।।
एड़ी लाल गुलाल- सी,पाटल दल-से गाल।
नाचे गोरी रंग ले, करती खूब धमाल।।
🪂 एक में सब 🪂
रंग फाग का छा गया, बरसे विरल अबीर।
होली सजी गुलाल से,गाते गोप कबीर।।
🪴 शुभमस्तु !
08.03.2023◆6.15आ.मा.
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