127/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कण -कण में
विस्तारित
तेरी चमकार।
बहती है
पाहन से
गंगा की धार।।
कहते हैं
दिखता है
आँखों से दृश्य।
नाशी है
प्रतिक्षण वह
किंचित नहीं वश्य।
मैं मैं में
भूला है
मानव संसार।
पिपीलिका
नन्हीं - सी
कुंजर - सी देह।
हो जाती
पल भर में
मिल जाती खेह।।
दोलित है
पल्लव भी
तेरे अनुसार।
अम्बर में
बादल हैं
बादल में मेह।
बूँदों से
जीवन है
बरसाती नेह।।
जिजीविषा
माने कब
जीवन में हार।
मंदिर या
मस्जिद में
तू ही है एक।
गूँज रही
घण्टी में
तेरी ही टेक।।
राम श्याम
ईशा तू
तू दस अवतार।
जीवों का
दाना तू
तू ही तो भूख।
सूरज में
निशिकर में
प्रभु नित्य मयूख।।
होती हैं
दो आँखें
दो-दो मिल चार।
तू मत हो
फिर भी तू
होता है नित्य।
तेरे बिन
मेरा क्या
कोई औचित्य!!
'शुभम्' बिना
तेरे प्रभु
नहीं शब्दकार।।
🪴शुभमस्तु !
22.03.2023 ◆5.30आ.मा.
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