123/2023
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✍️शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जीवन-सुमन जीव-अलि रसिया।
कौन भ्रमर जो रस न आ पिया??
योनि - योनि प्रति योनि विचरता,
तृप्ति न पाया बगिया- बगिया।
बचपन , यौवन खेल गँवाए,
फिर क्या जब थामी कर लठिया!
देखा नहीं दे दिया जीवन,
फिर भी कहलाई वह नदिया।
रस्सी जली नहीं बल निकले,
कूकर काम- केलि रत न जिया?
बादल में थेगली लगाई,
जनक - जननि का सिला न बखिया ।
'शुभम्' पार करनी वैतरणी,
चिल्लाता आजीवन दुखिया।
🪴शुभमस्तु !
20.03.2023◆2.30आ.मा.
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