133/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नहीं किसी के साथ अनय हो।
मानव, मानव से निर्भय हो।।
चोरी कर अपना घर भरते,
चोरों के घर क्यों संचय हो?
हो गीतों में ताल , छंद , स्वर,
सँग प्रवाह के सुमधुर लय हो।
रत हों मानवीय कर्मों में,
शांतिपूर्ण जीवन सुखमय हो।
मनसा वाचा और कर्मणा ,
अघ - ओघों का नहीं उदय हो।
यदि जीवन हो सदा संयमित,
दीर्घ स्वस्थ मानव की वय हो।
'शुभम्' कर्म ही साथ निभाते,
जन्म - जन्म वह फल अक्षय हो।
🪴शुभमस्तु !
26.03.2023◆10.45पतनम मार्तण्डस्य।
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