137/2023
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✍️शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चैत्र मास की सुवास,
प्रसरित दिनकर उजास,
बँधाती प्रिय आगमन आस,
देखकर पुनि मधुमास,
फिर - फिर बौरा उठे आम।
पिक की कुहू- कुहू टेर,
लिया विरहिणी को घेर,
क्यों हुई उन्हें देर ,
डर लगे निशि - अंधेर,
तंग करे मुझे अति काम।
हाय कैसा यह दौर,
गुँथे आपस में बौर,
देख उठे उर - हिलोर,
उठे हूक - सी अँजोर,
रतियाँ कटे जपि - जपि राम।
वृद्ध, पीपल ,वट ,नीम,
कुसुमित पल्लवित असीम,
खाल शुष्क कांत अमलीन,
लाल ओंठ हसित पात हीन,
हुआ अब शीत का विराम।
भौंरे तितली अपार,
हुए मद में सवार,
भरे अंग- अंग खुमार,
नित परागण प्रसार,
दिनांत सज्जित प्रात-शाम।
🪴शुभमस्तु !
28.03.2023◆3.15प.मा.
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