119/2023
[पतझर,कलगी,अंकुर,किंशुक, विपिन]
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☘️ सब में एक ☘️
पतझर में पल्लव झरे,देता पवन बुहार।
आए हैं ऋतुराज जी, कोकिल कहे पुकार।।
पतित पात पीले पड़े,पतझर की पहचान।
जीवन के तरु से झरें,यों पल्लव के प्रान।।
गंदुम- कलगी नाचती, होता स्वर्णिम भोर।
हरित आम बौरा गए,गाती पिक चितचोर।।
ठुमक -ठुमक चलने लगे,गलियों में तमचूर।
कलगी अरुणिम नाचती,इधर-उधर भरपूर।
पीत पात भू पर झरे, अंकुर आए साथ।
लाल-लाल मुस्कान में,पीपल पूर्ण सनाथ।।
शाख-शाख अंकुर भरी,हरियाए तरु नीम।
पीपल शीशम नाचते,हँसते अधर असीम।।
खड़ी अटारी देखती, किंशुक-वन की ओर।
बाला मदमाती हुई, देख कनक-सा भोर।।
अरुण सुमन किंशुक सजा,करे नेह की बात
यों ही जीवन में खिलें,सबके ही दिन-रात।।
विपुल विपिन सौंदर्य का,कैसे करें विचार।
प्रभु ही माली रात-दिन,उपकृत नव उपहार।
विपिन वृष्टि के हेतु हैं,लाते मेघ अपार।
सिंचन कर भू-अंक में, बनते प्राणाधार।।
☘️ एक में सब ☘️
किंशुक विकसे विपिन में,
अंकुर उगे अनेक।
पतझर में कलगी नई,
वासंती अतिरेक।।
🪴 शुभमस्तु !
15.03.2023◆4.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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