सोमवार, 27 मार्च 2023

हरित आम बौरा गए 🌳 [ दोहा ]

 119/2023


[पतझर,कलगी,अंकुर,किंशुक, विपिन]

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      ☘️ सब में एक ☘️

पतझर में  पल्लव झरे,देता पवन   बुहार।

आए हैं ऋतुराज जी, कोकिल कहे पुकार।।

पतित पात पीले पड़े,पतझर की  पहचान।

जीवन के तरु से झरें,यों पल्लव  के  प्रान।।


गंदुम- कलगी नाचती, होता स्वर्णिम  भोर।

हरित आम बौरा गए,गाती पिक  चितचोर।।

ठुमक -ठुमक चलने लगे,गलियों में तमचूर।

कलगी अरुणिम नाचती,इधर-उधर भरपूर।


पीत  पात  भू  पर झरे, अंकुर आए साथ।

लाल-लाल मुस्कान में,पीपल पूर्ण  सनाथ।।

शाख-शाख अंकुर भरी,हरियाए तरु नीम।

पीपल शीशम नाचते,हँसते अधर असीम।।


खड़ी अटारी देखती, किंशुक-वन की ओर।

बाला मदमाती हुई,  देख कनक-सा   भोर।।

अरुण सुमन किंशुक सजा,करे नेह की बात

यों ही जीवन में खिलें,सबके ही   दिन-रात।।


विपुल विपिन सौंदर्य का,कैसे करें विचार।

प्रभु ही माली रात-दिन,उपकृत नव उपहार।

विपिन  वृष्टि  के  हेतु हैं,लाते   मेघ  अपार।

सिंचन  कर  भू-अंक  में, बनते  प्राणाधार।।


      ☘️ एक में सब ☘️

किंशुक विकसे विपिन में,

                            अंकुर उगे   अनेक।

पतझर में कलगी नई,

                               वासंती अतिरेक।।


🪴 शुभमस्तु !


15.03.2023◆4.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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