सोमवार, 27 मार्च 2023

सबका लोहू लाल💞 कुंडलिया ]

 125/2023


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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

मानव-मानव   में बढ़ा, वर्ण-भेद-विष  तेज।

वर्ण व्यवस्था  कर रही,विकल सनसनीखेज

विकल   सनसनीखेज,  उठीं ऊँची   दीवारें।

वर्ण   हो  गया  ज्ञान,  परस्पर पत्थर  मारें।।

'शुभं'हिंस्र नर जाति,बनी है अतिशय दानव।

मरता  उर  का  प्रेम,ढोरवत जीता   मानव।।


                         -2-

सबका लोहू लाल है,किंतु मनुज  का  काल।

मानव-मानव का बना,कैसा विकट सवाल।।

कैसा  विकट सवाल,पड़ौसी उसे  न  भाए।

वर्ण व्यवस्था-भेद, मनुज ही नर  को खाए।।

'शुभम्'क्लीव हंकार,बनाता उसको दव का।

रहता मान उछाल,समझता ईश्वर   सबका।।


                         -3-

अपने को कहता बड़ा,और अन्य को नीच।

रंग -भेद  के नाम  से, नित्य उलीचे   कीच।।

नित्य  उलीचे   कीच, उठाए अपना  झंडा।

वर्ण  व्यवस्था  सींच, गढ़ा मनमाना फंडा।।

'शुभम्' देखता  देश, उठाने के बहु    सपने।

मानव से रख बैर, जाति के दिखते  अपने।।


                         -4-

घोड़ा   घोड़े  से   नहीं, कहता मैं   हूँ  गौर।

काला  रँग  तू नीच  है, मैं सबका सिरमौर।।

मैं  सबका   सिरमौर,पूज्य मैं ठाकुर   तेरा।

वर्ण  व्यवस्था  सीख, राहु ने तुझको  घेरा।।

'शुभम्' रंग का जाल,नहीं मानव को छोड़ा।

खग,पशु,गौ माँ,भैंस,नहीं लड़ते मृग,घोड़ा।।


🪴शुभमस्तु !


20.03.2023◆10.30आ.मा.

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