021/2024
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●© शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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धर्म का
कर्म से
इतना विरोधाभास
क्यों है?
देखते नहीं
अख़बार में
आदमी इतना बड़ा
चोर क्यों है?
एक ओर
घण्टे घड़ियाल
लहरती पताकाएँ,
महकती हुई धूप
मंत्रों की ऋचाएँ,
उधर अत्याचार
रिश्वत बलात्कार
क्या यही है
मानवीय सदाचार?
धर्म का दिखावा!
मात्र ऊपरी पहनावा?
यथार्थ कुछ और!
राजनीतिक उठा पटक
आचरण की सजावट,
मानवीय पतन की
बड़ी आहट।
राम के नाम पर
अमानवीय शोषण,
कहलाते धर्म के
वही जन भूषण,
भय और आतंक का
प्रदर्शन !
नकली भक्त आगे
पीछे भेड़ चालन!
कर्म का बीज
कभी मरता नहीं,
धर्म की मूल
पाताल में भी
हरी की हरी!
प्रज्ञा चक्षु खोलें
अपने को टटोलें
तभी धर्म -कर्म का
अंतर खंगालें,
भ्रम नहीं पालें।
●शुभमस्तु !
11.01.2024●7.45आ०मा०
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