040/2024
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● शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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भारत माता का करें,हम सब ऊँचा भाल।
कलयुग की विकरालता,का फैला है जाल।।
कथनी मीठी खाँड़-सी,करनी विष की बेल,
भाषण की नित माधुरी,पलटे पल-पल चाल।
सत्तासन की दौड़ में, दौड़ें आँखें मूँद,
उन्हें न चिंता देश की,कौवा बने मराल।
पले सपोले रात - दिन, चूस रहे हैं देश,
जागरूक हम सब रहें, गले न उनकी दाल।
नहीं चाहते देश का, करना पूर्ण विकास,
गेह भरा हो स्वर्ण से, लाल सेव - से गाल।
काम कभी होता नहीं, लिए बिना उत्कोच,
भ्रष्ट आचरण मंत्र है, सत चरित्र की ढाल।
'शुभम्' दिखाने के लिए , दाँत और ही मीत,
खाने वाले और हैं, दिखे न जिनका बाल।
●शुभमस्तु !
29.01.2024 ●9.30 आ०मा०
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