बुधवार, 31 जनवरी 2024

मैं सच नहीं बोलता ● [व्यंग्य ]

 044/2024

     

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●© व्यंग्यकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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क्या आपको पता है कि मैं सच नहीं बोलता।क्या किया जाए कि सच न बोलना मेरी कोई मजबूरी नहीं है।यह मेरी दैनिक आवश्यक ता भी नहीं वरन अनिवार्यता है।इसके बिना मेरा कोई काम नहीं होता।काम चलता भी नहीं, इसलिए जो भी करता हूँ या होता है या हो जाता है ;वह सब बिना सच के ही हो जाता है। फिर बेचारे सच को इतना कष्ट क्यों दिया जाए ?कि सत्यवादी हरिश्चन्द्र की बेइज्जती हो जाए!अपनी ओर से मैं साहित्य के किसी मुहावरे के समानांतर एक और मुहावरा खड़ा नहीं करना चाहता। हालांकि यह लोकतंत्र है। यहाँ बिना खड़े हुए कोई रह भी नहीं सकता।यहाँ खड़े होकर ही किसी को कुर्सी हासिल होती है। पहले सबको खड़े होना पड़ता है ,फिर पाँच साल तक चैन से बैठिए।कभी - कभी कारों या हेलीकॉप्टर में उड़ भी लीजिए,किन्तु खड़े मत होइए।


एक  बड़ी ही प्रसिद्ध कहावत कही जाती है कि जैसी चले बयार तबहिं रुख तैसो कीजै।बस इसी कहावत के मद्देनजर मुझे भी रहना पड़ता है। इधर- उधर,ऊपर- नीचे,आगे -पीछे कहीं कोई सच बोलने वाला न हो तो कोई भला सच बोलकर सच न बोलने वालों के बीच क्या कर लेगा?सिवाय इसके कि वह समाज में अपनी जग हँसाई कराए! हज़ार कौवों के बीच एक हंस अपने पंख ही नुचवाएगा। इससे ज्यादा सम्मान तो उसे मिल नहीं सकता।इसलिए मुझे अपने अड़ौस-पड़ौस के अनुसार चलना पड़ता है।

कहीं कोई सच नहीं बोलता तो मुझे ही क्या पड़ी है कि सच बोलकर सच की खोटी की जाए।नेता सुबह से रात तक बिना सच बोले जब देश चला सकता है, अधिकारी बिना सच के अपने अधिकार को अमली जामा पहना सकता है, कर्मचारी सच को तिलांजलि देकर अपना काम कर सकता है।बनिया बिना सच के आजीवन व्यापार कर सकता है ,फिर भी ईमानदार बना रहता है। पति - पत्नी एक ही छत के नीचे रहकर कभी सच को पास भी नहीं फटकने देते।प्रेमी -प्रेमिका का दूर -दूर तक सच से कोई नाता नहीं है।फिर भी उनका प्रेम परवान चढ़ा रहता है।मेरी समझ में नहीं आता कि सच किस चिड़िया का नाम है और वह किस पेड़ पर अपना घोंसला बनाकर रहती है ? ये संपूर्ण पृथ्वी किस सच की धुरी पर घूम रही है, कहना कठिन है। जो जैसा कह देता है ; हम वैसा मान लेते हैं। 

इतना अवश्य है कि सच के बारे में ढिंढोरा बहुत पीटा जाता है,किन्तु उसका  रंग,रूप,आकार,प्रकार कैसा है ,कोई नहीं जानता। यदि आप मे से किसी ने सच को देखा हो तो मुझे भी बतलाना।यदि दिखा सको तो दिखा भी देना।लेकिन सच का शोध करने या ज्यादा माथापच्ची करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब दुनिया के सारे काम काज,ब्याह -शादी,बच्चे, नौकरी,चाकरी,ठेकेदारी,दुकानदारी,राजनीति,कर्मकांड,व्यवसाय,जीना ,मरना,विकास,विनाश,प्रेम,घृणा,ईर्ष्या,क्रोध,लड़ाई,झगड़ा, शासन,प्रशासन,प्रसाधन,प्रमाणन,  युद्ध,कारीगरी,जादूगरी,बाजीगरी आदि आदि बिना सच के ही अस्तित्व में हैं और बाकायदा फल -फूल रहे हैं तो रोहिताश की माँ को उसकी साड़ी के पल्लू का कफ़न क्यों बनवाया जाए?

इतनी सारी बातें करने और जानने के बाद आप भी समझ गए होंगे कि जिसके बिना भी काम चल सके ,उसे व्यर्थ ही कष्ट क्यों दिया जाए! इसलिए मैं सच से सर्वथा दूर ही रहता हूँ और एक परिवक्व नेता की तरह यदि पूरब जाता हूँ तो पश्चिम बताता हूँ और उत्तर जाता हूँ तो दक्षिण बताता हूँ।अपना - अपना सिद्धांत है। मेरा भी अपना यही सिद्धांत है कि सच मत बताओ। इसी में सुरक्षा है।निश्चिंतता है।जोख़िम नहीं है। विश्वास है। यदि आप कभी -कभी सच  बोलते हों या सच पर चलते हों तो मुझे अपना प्रेरणास्रोत बनाइए और बिना सच के जीकर देखिए।फिर देखिए कि आपके रहन - सहन और प्रगति में कितना अंतर आता है। जो काम सफल नहीं होता ,वह भी सफलता के पहाड़ पर कितनी जल्दी चढ़ जाता है।बस सच से दूरी बनाएँ और  चैन की वंशी बजाएँ। 

● शुभमस्तु !

31.01.2024●6.45प०मा०

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